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लेखनी प्रतियोगिता -14-Jul-2023

#विषय:- स्वैच्छिक 
#शीर्षक:- आनन

ओ दर्पण भी शरमाये
जो आनन तुम्हारा दिखाये
चाँद सा कह देता पर
चाँद में तो दाग़ नज़र आये
दर्पण भी सुशोभित होता
प्रिय जिससे रोज़ सजती
काज़ल बिन्दी और लाली लगाये
देख साजन फूले न समाये
कितने बसंत कितने सावन 
बीत गये फिर भी गोरी अभी भी लुभावन 
चंचलता की मूरत 
मासूमियत भरी सूरत 
आते जाते मन को हरसाये
गोरी का आनन दिल न भुला पाये |

रचना मौलिक, अप्रकाशित, स्वरचित और सर्वाधिक सुरक्षित है |

"प्रतिभा पाण्डेय" चेन्नई 
14/7/2023

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5 Comments

बेहतरीन अभिव्यक्ति और खूबसूरत भाव

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Abhinav ji

15-Jul-2023 07:36 AM

Very nice 👍

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Milind salve

14-Jul-2023 08:50 PM

Nice 👍🏼

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